रसोईयाँ

बिलती रोटियों,
पकती सब्जियों,
कुटते मसालों,
सूखते पापड़ों,
मिंढती गुझियों,
सींझते अचारों,
रंधते दलियों,
मथती दहियों,
निथरते सागों,
महकती बड़ियों,
बिनती दालों,
उतरते उबालों,
छनते अनाजों,
पिसती चटनियों,
के बीच थोड़ा-थोड़ा खुद में बची रही वो इतनी,
कि गाहे-बगाहे सबसे आँख बचाकर
अपने सपनों को रसोई में छिपाकर
पकाती रही वो छोटे-छोटे लम्हों की हाँडियों में !
बस उसी की खुशबू से ही तो  सदा से महकती हैं
उसकी हथेलियां और तुम्हारी रसोईयाँ !


तारीख: 20.02.2024                                    सुजाता









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