बाली से
खेतों का
रूप क्या सुनहरा है।
सरसों ने पीली
चूनर है ओढ़ी।
अलसी औ मटर की
फब रही जोड़ी।।
गुड़हल का
रंग दिखा
लाल-सुर्ख-गहरा है।
टेसू बसंत का
है बहुत चहेता।
मल्लाह नदी में
नाव सदा खेता।।
किसी धर्मशाले में
राहगीर-
ठहरा है।
आम औ महुआ
गंध हैं बिखेरते।
तोतों के झुंड
जैसे हों टेरते।।
चैत ने तो मानो
पहन रखा
सेहरा है।