साफ़ साफ़ लिखा था

सफ़्हे के हर सफ़ में साफ़ साफ़ लिखा था
वो ना-तमाम किस्सा साफ़ साफ़ लिखा था।

भले उल्फ़त में हमें बदनामी के दाग धब्बे मिले
हमने नाम तुम्हारा पाक साफ़ लिखा था।

मुझसे रिश्ता तोड़ना तुम्हारा तोड़ गया मुझको
मेरी किस्मत में टूटना साफ़ साफ़ लिखा था।

तेरे होठों की लर्ज़िशों में भी मेरा नाम नहीं था
मेरी सिसकियों में तेरा वज़ूद साफ़ साफ़ लिखा था।

क़रार-ए-इश्क़ पे तुमने कभी कुछ लिखा ही नहीं
एक मेरा ही दस्तख़त वहाँ साफ़ साफ़ लिखा था।

सच्चा भले नहीं कोई झूठा मुबालग़ा ही सही
सुना है मेरी क़ब्र पर मजनू साफ़ साफ़ लिखा था।


तारीख: 14.02.2024                                    जॉनी अहमद क़ैस




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है