सच्चाई जिस तरह से घबराने लगी है

खामोशियाँ भी शोर मचाने लगी है
रात भी अब दिन भर जगाने लगी है ।।1।।

बेगैरत खौफ बनके सताने लगी है
आवाम ज्यों कत्ल का जश्न मनाने लगी है ।।2।।

हरकतें मंशाएँ खूब बताने लगी है
औलाद जबसे अहसान जताने लगी है ।।3।।

फ़िज़ाएँ अब रोज़ झुलसने लगी है
हवाएँ जैसे ही रुदाली सुनाने लगी है ।।4।।

इंसानियत खुद को छुपाने लगी है
सच्चाई जिस तरह से घबराने लगी है ।।5।।

हँसी होंठों पे आने से शर्माने लगी है
दिल से ज्यादा जब ज़ुबाँ समझाने लगी है ।।6।।


तारीख: 07.04.2020                                    सलिल सरोज









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