सखी री मोरे पिया कौन विरमाये?(ब्रज भाषा की कविता )

सखी री मोरे पिया कौन विरमाये?
कर कर सबहिं जतन मैं हारी, अँखियन दीप जलाये,
सखी री मोरे पिया कौन विरमाये...

अब की कह कें बीतीं अरसें, केहिं कों जे लागी बरसें,
मो सों कहते संग न छुरियो, आप ही भये पराये,
सखी री मोरे पिया कौन विरमाये...

गाँव की गलियां सूनी लागें, सूने खेत डगरिया,
बाग़ बगीचा लागें बीहड़, सूनी सेज़ अटरिया,
मैं दुखियारी बावरी डोलत, आप बने रंग-रसिया,
तोरे बिना मैं ऐसे, वन-वन राधा ढूंढे संवरिया,
तुम भोगी हम प्रेम के जोगी, नित नित अलख जगाये,
सखी री मोरे पिया कौन विरमाये...

अब न सुहावे तीरे-नदिया, अब न सुहावे सावन बैरी,
सूने हुय गये पनघट-पाषन, अब न सुहावे बागन छैरी,
जा रास्ता तुम मो सों बिछुरे, धूलि भस्म रमाये,
सखी री मोरे पिया कौन विरमाये...

विरहा की जे चटक दुपहरी, छतियन अगन जलाये,
सावन की रुत रिमझिम बैरन, तन मन मोरा गलाये,
मोर, पपीहा, कजरी कोयल, सब तोरी बतियाँ करते हैं,
पुन पुन कहत, सजन निरमोही अब लौं काहे न आये,
सखी री मोरे पिया कौन विरमाये...

सौत पड़ोसिन मो सों कहती, कब अयिहें तोरे भरतार,
काहे छवीली बावरी हो गयी, काहे उतरे छैल सिंगार,
मो कों लागत दो अखियन में, अब लों पिया समाये,
सखी री मोरे पिया कौन विरमाये...

गाँव गुजरिया मंगल गावे, पग पग दीप जलाती,
मोरे अंगना मास अमावस, के जोडु दिय बाती,
फाग महीना रंग रंगीलो, तुम बेरंग कराये,
सखी री मोरे पिया कौन विरमाये...

चढ़ के अटरिया सेज़ सजाती, फुलवारी बरसाती,
पर जा सेज़ा हो गयी गीली, अँखियाँ जल बरसाती,
रात चंदनियाँ बन गयी सौतन, चंदा कौन सुहाये,
सखी री मोरे पिया कौन विरमाये...


तारीख: 28.06.2017                                                        एस. कमलवंशी






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