शांत हंस

कैसे कुछ लोग
चलते जाते हैं शांत हंस की तरह
जीवन को जीते एक एक दिन  
और मैं एक दिन में हज़ार दिन जीती हूँ
सैकड़ों जगह होती हूँ
दिमाग़ जो कभी शांत नहीं होता
दौड़ता ही जाता है
सरपट भागती रेल की तरह
कोशिश करती हूँ की थाम पाऊँ कभी तो
कुछ देर ही सही
चैन की नींद सो पाऊँ
सुकून से गुज़ार पाऊँ कोई एक दिन तो
बिना सोचे आज में जी पाऊँ बेख़ौफ़
अपने ही दिमाग़ से हार जाती हूँ
कभी कभी सोचती हूँ
शायद मैं भी शांत हंस सी दिखती हूँ सबको
चेहरे पे शांति लिए
आराम से तैरती बेफ़िक्र
आगे बढ़ती निरंतर
शायद किसी को नहीं दिखता
कितने पैर छटपटाती हूँ
पानी के नीचे
एक क़दम भी आगे बढ़ने के लिए


तारीख: 04.04.2024                                    पूर्वा









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