शून्य


पीड़ा के पास शब्द होते तो...
सबसे पहले तुम्हें लिखता
वही जो घने अंधेरे के सूनेपन में
और लाइब्रेरी की मुर्दा आवाजों से
जलती हैं


कोरे कागज़ की तरह अनवरत,
सपनों की मौत का मातम
सुनाई नहीं देगा तुम्हें,
तुम प्रिये..
इतना करना


दुख की दहलीज से उठकर
मेरा ज़िक्र
अपने काले तावीज में
बंद कर लेना, हमेशा के लिए,
यहां कोई कारवां था
जो गैरत से खत्म हो रहा है...


हो सके तो उसकी ठंडी राख में तलाशना...
मिरे जीने की तलब के कतरे
पा जाओगी कहीं शून्य में.
और सिसकती स्याही के स्वर
अब मौन हो जाएंगे.


तारीख: 12.04.2020                                    मौसम राजपूत




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