जब मैं यहाँ से घर जाऊँगा
तय है के तुम्हें भूल जाऊँगा
और जायज़ भी है मेरा भूलना तुम्हें
आख़िर कौन थे तुम
तुम्हारा नाम पता कुछ भी तो नहीं जानता
यहाँ पत्थर पे लिखा है तुम दंतेवाड़ा में शहीद हुए थे
तुम भी पागल हो दंतेवाड़ा आख़िर कौन जाता है
मैं भी गया था दिल्ली घूमने और फिर
घर आ गया
तुम वहाँ बिना खाने और पानी के
क्यूँ थे उन बियाबन जंगलो में
किसके लिए थे
ख़ैर मैं चलता हूँ धूप बहुत तेज़ हो गयी है
बदन जलने लगा है
मेरा घर महफ़ूज़ है.. ठंडा है..