दिया जले चरखा चले,और चले रोशनाई,
बापू के कार्यालय में फिर एक चिट्ठी आयी।
मन में करुण भाव भरकर बापू संगी से बोले
हरिया का तोता पीड़ा से अब न आंखे खोले।
लिखा है ऐसा इस चिट्ठी में हरिया ने रो रो कर
गायों ने ईर्ष्या में आकर मारी उसको ठोकर।
टूट गए हैं पंख पीठ के, बिखर गया है साज
रो रो कर पूछा है उसने, है क्या कोई इलाज।
लिखा है ऐसा उसने आगे धनिया भी बीमार
तोता उसके दिल का टुकड़ा उससे प्यार अपार।
पुत्री थी मेरी एक प्यारी, वो जंगल के भेंट चढ़ी
बापू की आंखें भर आयीं जैसे ही ये बात पढ़ी।
मृदु भावों ने फिर उनको भीतर से झकझोर दिया
फिर संगी बापू से बोला तुमने कैसा रोग लिया।
आओ तुमको हरिया के तोते का राज सुनाऊँ
तोता उसका मिट्टी का है क्या तुमको बतलाऊँ।
तोते को संतान मान कर उससे बातें करते हैं
जबसे टूटा उनका तोता तबसे जीवित मरते हैं।