तू जाग

तू जाग! तू जाग!

लो भोर हो गई है अब
रोशनी ने छेड़ा है 
मधुर-मधुर राग
तू जाग ! तू जाग!

अवसाद सारे भूल जा
जो रात संग है मिट गया
तमस  सूर्य के समक्ष 
मानती है हार
तू जाग! तू जाग!

निराश तेरा चित्त हो तो
निकट ना  आए कोई
जो मुस्कुरा विश्वास से 
कदम बढ़ाएगा अभी
दुःख भी मान जाए हार
तू जाग ! तू जाग!

बीज सारे सपनों के
वटवृक्ष बनने वाले हैं
सींच इन्हें ,पाल इन्हें
तेरे अंदर ही छिपा है
संघर्ष रूपी खाद
तू जाग ! तू जाग!

व्यथा को तू बनाले ढाल
कर्म को बना रसाल
चुनोतियाँ को मात देगी
कठिनाइयाँ जाएंगी भाग
तू जाग! तू जाग!
 


तारीख: 01.03.2024                                    सविता दास सवि









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