सवेरा

हर सुबह नयी रोशनी 
उम्मीदें लेकर आती,
अँधकार से निकालकर 
प्रकाश को दिखाती,
जग की सुन्दरता 
सुन्दर चित से देखो,

शीतल पवनों की छाया में 
सुबह निकलकर तो देखो ,

इन पवनों की नई दिशाएं
नये पथ को दिखा रही,

है ये जिन्दगी --
तो कभी पुर्वा ,तो कभी पछुआं
सी बहा रही,

उठो एक बार फिर तुम  
उन नये रास्तो पर चलने को ,

हुआ सबेरा चिड़िया बोली 
अब तो उठ जा रे पगले,

क्यूं खोया है 
तू सपनों में

नीरसता की छाया में
उठा गिरे मन को 
ज्वार-भाटा सी इच्छाओं को
अब पूरा करता तू चल
अब पूरा करता तू चल
वो पथिक तू आगे बढ़ता चल
वो पथिक तू आगे बढ़ता चल


तारीख: 02.07.2017                                    शिवम् सिहं शिवा









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