उलझी गुत्थी

चलो आओ चले क्षितिज के पार,
जहां स्नेह, त्याग और हो प्यार ।
मन की उलझी गुत्थी खोले,
आओ भीतरी पट खोलें।
चलो चलें क्षितिज के पार,
जहां जीवन के रंग हजार,
ना कोई गरीब ना कोई अमीर,
सब मिलकर प्यार का बंधन जोड़े,
विश्वास और प्रेम का बीज गाड़े।
जीवन पथ पर अटल रहे,
राह में चाहे कांटे रहे,
चलते रहे, क्षितिज के पार,।
धरती आकाश का सुन्दर मिलन,
आओ देखो तुम यह अनुपम उपवन।
चले चलो क्षितिज के पार।
ना कोई उच्च नीच का भेद,
क्षितिज पर है सब माफ खेद।
आओ चले क्षितिज के पार।


तारीख: 28.02.2024                                    रेखा पारंगी









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