ज़िन्दगी निकल रही है

ज़िन्दगी निकल रही है  
रेत सी फिसल रही है
इस घनघोर परीक्षा में
परिणाम की प्रतीक्षा में
खुद की समीक्षा करते
अंतर्मन में शिक्षा भरते
शम्मा के जैसे जल रही है
सांझ सी ढल रही है
ज़िन्दगी निकल रही है

एक तीव्र स्वपन समान
बचपन से हुए हम जवान
एक अनदेखा बंधन हो मानो
सुबह की शबनम को ही जानो
बर्फ सी पिघल रही है
समय को निगल रही है
ज़िन्दगी निकल रही है


तारीख: 12.04.2024                                    अमित निरंजन









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