मैं कौन हूँ ?
अपरिचित हूँ इस तथ्य से ।
मैं कौन हूँ ?
कहीं खण्डहर हुए मकान का वो हिस्सा तो नहीं ,
जो ढह चुका है आँधियों के थपेडे खाकर।
मैं कौन हूँ ....?
या चट्टान का वो टुकड़ा
जो कट चुका है
अपनी ही जड़ों से
नई संस्कृति बसाने को।
मैं कौन हूँ ...?
कहीं पतझड़ में पेड़ से गिरा
वो सुखा पत्ता तो नहीं
जो पक चुका है, थक चुका है,
दब चुका है
अपने ही बोझ से।
मैं कौन हूँ ...?
कहीं अपने व्यक्तित्व का छिपा हुआ
वो हिस्सा तो नहीं ,
जो खुद को साबित करने पर तुला है
जो सदैव लड़ने को तैयार है
किसी भी परिस्थिति से ।
वो जो न झुका है कभी ,
न टूटा है कभी।
मैं कौन हूँ ?
आज भी इसी खोज में हूँ ।