जय जगन्नाथ

 ।। गीता और भगवान् जगन्नाथ ।।

यदृच्छया चोपपन्नम् स्वर्गद्वारमपावृतम्। 
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।। 

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं कि हे पार्थ! अपने अपने प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वार रूप इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान क्षत्रिय लोग ही पाते हैं।  

हरि अनंत हरि कथा अनंता। 3।। 

दोस्तों आज गुरू पूर्णिमा के अवसर पर जगद्गुरु भगवान् श्रीकृष्ण को प्रणाम करते हुए उनके मुख से गाए हुए सर्वोच्च ज्ञान श्री मद्भाग्वत गीता का स्मरण करते हैं। 
गीता का हर श्लोक अपने आप में एक सम्पूर्ण शास्त्र है।  

यदृच्छया चोपपन्नम् स्वर्गद्वारमपावृतम्। 
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।।

इस श्लोक में भगवान् हमें अर्जुन के माध्यम से बहुत ही सुन्दर संदेश दे रहे हैं। हम सब जीवन में अपने कर्म करते हुए ही अपने भविष्य का निर्माण करते हैं। चाहे हम उन्नति की ओर जाएं या पतन की ओर, इसका निर्णय हमारे कर्मों से ही होता है। विकट से विकट परिस्थिति में भी हमारा निर्णय ही महत्वपूर्ण होता है। युद्ध भूमि से तात्पर्य है हमारी कर्मभूमि। किसी भी स्थिति में हमें अपने कर्तव्य को नहीं भूलना चाहिये। केवल तभी हम स्वर्ग अर्थात् अपनी, परिवार की और राष्ट्र की उन्नति कर सकते हैं।  


जगद्गुरु भगवान् श्रीकृष्ण आज भी भगवान् जगन्नाथ के रूप में पूरी में विराजमान हैं। यहां भगवान् एक अनोखे रूप में ही प्रतिष्ठित हैं। 

हमेशा कोई निराला रूप धारण कर, सभी को एक अद्भुत ज्ञान देते हैं मेरे ठाकुर। 

हम देखते हैं कि भगवान् के हाथ भी पूरे नहीं हैं और पैर भी। साथ ही वे हमें अपलक निहारते रहते हैं। 

क्या तात्पर्य है इस रूप का।  हाथ और पैर न होने का अर्थ यह है कि भगवान् कहते हैं हे मानव मेरे भरोसे रहने के बजाय अपने कर्म स्वयं करो और अपने स्वर्ग का मार्ग स्वयं ही निर्धारित करो। जैसे कर्म तुम करोगे वैसे ही मार्ग पर अग्रसर होते जाओगे। मैं स्वयं अपलक तुम्हें निहारता रहूंगा और कर्म करते हुए निरंतर तुम्हें देखूँगा। 

इस रूप से एक तात्पर्य हमारी इच्छाशक्ति भी है। भगवान् जगन्नाथ कहते हैं कि यदि हमारी इच्छा शक्ति प्रबल है तो हमें कोई भी विघ्न या अड़चन रोक नहीं सकते। हाथ या पैर का ना होना बताता है कि सामर्थ्य और किसी का साथ न हो तथा आगे कोई  रास्ता न हो तो भी अपनी इच्छा शक्ति और खुले हुए ज्ञान चक्षु के साथ हम जगन्नाथ भी बन सकते हैं अर्थात् कोई भी ऊंचाई छू सकते हैं।  

इस सांवरे की चौखट तो बेसहारों का सहारा है। भगवान् कहते हैं कि यदि कर्म पथ पर मेरे भक्त सही मार्ग पर हैं तो उनका कार्य पूर्ण करने के लिए मुझे हाथों की आवश्यकता नहीं है। मैं तो केवल एक पुकार पर बिना पैरों के ही दौड़ता आता हूँ। हर पल कर्मयोगी को मैं अपनी आंखों में बसा कर रखता हूँ ताकि इस युद्ध भूमि में वह निर्भय होकर कल्याण पथ पर चले। 
 

जय जगन्नाथ। 

जय श्री कृष्ण।। 
 


तारीख: 27.02.2024                                    डॉ गुंजन सर्राफ









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