तो समझ लो मियाँ की गए थे आज फिल्म देखने नाम था, “लिपस्टिक अंडर माय बुर्खा”. फिल्म को लेके बहुत हो हल्ला मचा हुआ था, कभी सुन रहे थे आएगी, कभी सुन रहे थे नहीं आयेगी, कभी सुनने को मिला की आएगी लेकिन “बुर्खा” काट-छांट कर आएगी. काट-छांट कर इसलिए क्यूंकि हमारे सेंसर बोर्ड के चचा लोग को लगता है की हम और इस देश की पब्लिक शायद अभी तक इतनी समझदार नहीं हुई है की वो इतने गंभीर मुद्दों को झेल पाएगी.
वैसे सही ही लगता है उन्हें, हम भी बिलकुल वैसे ही है जो सिनेमा हॉल में जाकर ऐसी फिल्मों के पक्ष में खड़े होकर ताली बजा देते हैं, और घर में या सड़क पर तो चुटकी भी नहीं बजाते, वैसे आजकल राष्ट्रगान भी बजता है खड़े होने के लिए.
वैसे जाने दीजिये छोड़िये इ सब बात को, बताते हैं फिलिम की कहानी के बारे में. कहानी हैं एक औरत के जीवन की जिसका नाम है “रोजी”, जिसको सुनाती है चार औरतें, जो जीवन के चार अलग-अलग पड़ाव पर हैं.
1. कहानी है उस लड़की की जो रोज अपने घर से संस्कारों और तहजीब को बुरखे में लपेट कर निकलती है, और उसके सपने घुट कर दम न तोड़ दें इसलिए पब्लिक टॉयलेट में उन संस्कार और तहजीब को बदल लेती है.
2. कहानी है उस लड़की की जो आत्मनिर्भर होकर भी अपने सपनो को ऊंचाइयां देने के लिए एक सहारे की जरुरत महसूस करती है.
3.कहानी है उस औरत की जो हर दिन अपने ख्वाबों में थोड़ा-थोड़ा कर के पंख लगाती है, और जिसे हर रात नोच दिया जाता है.
4. कहानी है उस औरत की जो अपने उन ख्वाहिशों को जिन्दा करना चाहती है जिसे उसके सफ़ेद बालों ने मार दिया है.
कहानी बस इतनी नहीं है, कहानी इससे कहीं ज्यादा है, और शायद मेरे इन चार लाइनो के विवरण से कहीं बहुत आगे. कहानी वंहा है जहाँ एक दृश्य में एक नायिका दूसरे नायिका से कहती है,
सब मिलाकर एक छोटी सी कहानी होने के बावजूद भी फिल्म अपना गहरा प्रभाव छोड़ जाती है. और आपके लिए कई सवाल भी छोड़ जाती है, जिसका जवाब शायद हम और आप खुद को मॉर्डर्न कहने के बाद भी नहीं दे पा रहे हैं.
समय निकालिये, और इस हफ्ते इसे देख आइये, क्यूंकि यह फिल्म हिंदी सिनेमा के नए दौर को नयी ऊंचाइयां दे रही है.
-आवारा कुत्ता (समझदार)