निरीह प्रेम

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मेरे लिए प्रेम, 

निदाघ आकाश की तरह है।

 

जिसे आषाढ़ अकेला छोड़, 

रिमझिम बरसता सावन दे जाता है। 

 

रिमझिम बरसते बूंदों को, 

उत्सव और तरंगें समझते हैं। 

 

जाते-जाते सावन भी,

स्मृतियों के जड़ें बना जाता है, 

शेष रह जाता है ,

निरीह आकाश तले, 

मेरा प्रेम। 

 


तारीख: 23.02.2024                                    अदिति शंकर




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