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मेरे लिए प्रेम,
निदाघ आकाश की तरह है।
जिसे आषाढ़ अकेला छोड़,
रिमझिम बरसता सावन दे जाता है।
रिमझिम बरसते बूंदों को,
उत्सव और तरंगें समझते हैं।
जाते-जाते सावन भी,
स्मृतियों के जड़ें बना जाता है,
शेष रह जाता है ,
निरीह आकाश तले,
मेरा प्रेम।