पता न क्यूँ,
बनारस बुलाता है।
मन होता है बनारस में ही रम जाऊँ ।
बनारस में ही बस जाऊँ।।
बैठूं दिन और रात गंगा घाट पर।
सो जाऊँ वही किसी की खाट पर।।
न कोई टोके न कोई रोके,
मैं लुक जाऊँ वहां के साहित्य में।
मैं छुप जाऊँ वहां के अध्यात्म में।।
तू भी आ के रम जाये मुझमे।
गंगा घाट पर थम जाये मुझमे।।
वहां बैठ तू मुझमें खुद को ढूंढे।
मैं तुझमें खुद को ढूंढू।।