घाट-ए-बनारस

पता न क्यूँ,

बनारस बुलाता है।

मन होता है बनारस में ही रम जाऊँ ।

बनारस में ही बस जाऊँ।।

बैठूं दिन और रात गंगा घाट पर।

सो जाऊँ वही किसी की खाट पर।।

न कोई टोके न कोई रोके,

मैं लुक जाऊँ वहां के साहित्य में।

मैं  छुप जाऊँ वहां के अध्यात्म में।।

तू भी आ के रम जाये मुझमे।

गंगा घाट पर थम जाये मुझमे।।

वहां बैठ तू मुझमें खुद को ढूंढे।

मैं तुझमें खुद को ढूंढू।।

 


तारीख: 24.02.2024                                    रितु राज सिंह









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