ख्वाब उसने ये सजाया क्यूँ नहीं
नाम लबों पे मेरा उसके आया क्यूँ नहीं ।
दिल में था गर एहसास मेरे इश्क़ का
निगाहों से उसने जताया क्यूँ नहीं ।
वादे तो किये थे जन्मों साथ रहने के
फिर रिश्ता मुझसे तूने निभाया क्यूँ नहीं ।
तेरी यादों में जलना खुदपसंदी है मिरी
कहर यादों को बरपाया क्यूँ नहीं ।
लाज़मी नहीं मुझको उसका पर्दानशीं होना
दुपट्टे को हवा में फिर लहराया क्यूँ नहीं ।
एक मैं ही हूँ तेरे इश्क़ का तलबगार जो
ये इलज़ाम "रिशु" पर लगाया क्यूँ नहीं ।