तेरे क़दमों की आहट से

तेरे क़दमों की आहट से धड़क उठता है ये दिल
तेरी पायल की छनक से महक उठता है ये दिल

नज़र भर देख ले, तेरे इंतज़ार में है तरसा
कब से इस आस पर टिका हुआ है ये दिल

तूफ़ानों से भी ना डरता जो दिल कभी था मेरा
तेरे ही इश्क़ की बयार से झुक उठता है दिल

ज़माने की सारी ठोकरों में था जो बेपरवाह
तेरी बेरुख़ी पे रुक कर सिसक उठता है ये दिल

तू ख़ुद से बेख़बर है, मगर समझता है सब कुछ
किसकी है ख़ातिर हर ग़म पीता, सहता है ये दिल

वो मंज़िल जो कभी तेरे-मेरे ख़्वाबों में थी
अब उसके ख़्वाब में रास्ता बदल उठता है ये दिल

ना मयखाने की गलियों में, ना सजदे में है 'मुसाफ़िर'
उसकी गली में ही जा कर ठहर उठता है ये दिल


तारीख: 11.04.2024                                    मुसाफ़िर






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