तेरी आँखों से ही कोई रास्ता निकल आए सही
नया पुराना कहीं कोई वास्ता निकल आए सही
तलाश मंज़िल की बाकी तो है , फिर क्या हुआ
तेरी ज़ुल्फ़ों से शायद गुलिस्तां निकल आए सही
मेरे इंसान होने में अब भी थोड़ा भरम है तो सही
तेरी जुस्तजू से मेरा भी फरिश्ता निकल आए सही
तुम्हारे चेहरे में अक्स अपना मैं देख लेता हूँ सही
तुम्हारे वक़्त में ही मेरा गुज़िश्ता निकल आए सही
खोलूँ जो कभी मैं अपनी यादों के पिटारों को सही
कितनी ही अनकही बातें आहिस्ता निकल आए सही