इबादतों की दुनियाँ

इबादतों की दुनियाँ मे खोया हो जैसे
वो सोया था ऐसे फरिश्ता सोया हो जैसे

उसके पत्तों से शबनम ऐसे झड़ती थी
रात भर वो दरख़्त अकेले रोया हो जैसे

उसकी चीख मे दर्द की इंतहा छुपी थी
लगता है उसने जख्मों को धोया हो जैसे

उंगलियों के हालात ये कह रहे हैं तुमने
मुहब्बत की तस्बीह को पिरोया हो जैसे

खुशबू से तुम्हारी ऐसा लगता है कि तुमने
रूह को जन्नत के इत्र मे भिगोया हो जैसे


तारीख: 05.02.2024                                    मारूफ आलम




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