क़ाबिल न रह सके


धोखा चमक दमक से उजाले का खा गए।
देखा जो  ग़ौर  से  तो  अंधेरे  में  आ  गए।।

दुनिया को मुंह दिखाने के क़ाबिल न रह सके।
हमको हमारे शौक़  ही  ये दिन दिखा गए।।

तहज़ीब  के  ये  रंग   भरे  दौर  क्या  कहें।
ख़ुद आज हमको अपनी नज़र से गिरा गए।।

नादान हम थे कितने की सब कुछ लुटा दिया।
रुसवा हुए  तो  होश  ठिकाने  पे  आ गए।।

छोटी सी एक भूल की माफी न मिल सकी।
जो की न थी ख़ता वो सजा हम भी पा गए।।

अपनी कमी कहें  की  ये क़िस्मत ख़राब है।
सब लोग हमको  अपना  निशाना बना गए।।

शिकवा करे 'निज़ाम'  तो  किससे  करे यहाँ।
जो हम सफ़र थे अपने वही ख़ुद मिटा गए।।

 


तारीख: 14.04.2024                                    निज़ाम- फतेहपुरी









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है