निगाहें फरेबी ज़हन बदनुमाँ है
उसे अपनी दौलत पे बेहद गुमाँ है।
मुझे छत की कोई जरुरत ही क्या है
मेरे सर पे यारों खुला आस्माँ है।
बताए किसे हम कि तन्हा हैं कितने
नहीं कोई मेरा बचा रहनुमाँ है।
जटाओ सी उलझी है अब जिंदगी ये
निराशाएँ घेरे युँ ही खामखाँ हैं।
निगाहों मे जबसे वो आकर बसी हैं
मेरी जान तब से समाँ खुशनुमाँ।