शायर बहुत हुए हैं

शायर बहुत हुए हैं जो अख़बार में नहीं।
ऐसी ग़ज़ल कहो जो हो बाज़ार में नहीं।।

दिल से मिटा के नफ़रतें मिलकर रहो सदा।
जो लुत्फ़ प्यार में है वो तकरार में नहीं।।

अपनी कमी कहें की ये क़िस्मत का खेल है।
साहिल पे कश्ती डूबी है मझधार में नहीं।।

पहचान होती वीरों की महाज़-ए-जंग में।
जो मर्द है वो भागता शलवार में नहीं।।

आकर चले गए हैं सिकंदर बहुत यहाँ।
तुम चीज़ क्या अमर कोई संसार में नहीं।।

माया का मोह छोड़ के तू देख तो ज़रा।
जो है मज़ा फ़क़ीरी में परिवार में नहीं।।

जिस ताज पर निज़ाम तुझे इतना नाज़ है।
वो इक जगह रहा किसी दरबार में नहीं।।
 


तारीख: 06.02.2024                                    निज़ाम- फतेहपुरी









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