विसर्ग की डायरी

* कभी सर्दी, कभी बारिश, कभी दोपहर से गुज़रे
  नहीं मालूम है हमको कब किस पहर से गुज़रे
  
  छुपा के रंज और गम हम अपने सीने में
  लुटाया प्यार ही हमने जब जिस शहर से गुज़रे।

*  मैं गणित का सवाल, तुम हिंदी का शब्द प्रिये
   मेरा तो हल एक है, तेरे अर्थ हजार प्रिये।

*  सबकी सुनने के बाद दिल इस दोराहे पर खड़ा है,
   मांगा था क्या और मिला क्या है।
   
    बहुत जी चुके सबके लिए,
   अब अपने लिए जीने का फैसला किया है।

*  चाहता हूं कुछ ऐसा हो जाये,
   जैसा मैंने सोचा था वैसा हो जाये।

   अगर चाहने से सब होता तो कुछ और ही बात होती,
   कुछ और ही बात होती अगर वो मेरे साथ होती।
 


तारीख: 15.03.2024                                    विशाल गर्ग









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