मैं अक्सर व्यस्त रहता हूँ। यह मेरी आसाधारण प्रतिभा ही है कि व्यस्त रहते हुए भी मैं फेसबुक, वाट्सएप और कई लोगो के दिल में बिना किराए और रेंट एग्रीमेंट के रह लेता हूँ। व्यस्तता के प्रकोप से पीड़ित होने के बावजूद भी, मैं एक अच्छे सेवक की तरह भोजन और नींद के प्रति अपनी सेवाएं, पूरा मनोयोग छिड़क कर, नियमित रूप से देता हूँ।
व्यस्त रहने का इतना गहरा अभ्यास हो चुका है कि बिना जगाए ही, मैं गहन निद्रा में भी व्यस्त नज़र आता हूँ ताकि अव्यस्त लोगो की नज़र ना लगे। शुरुआती अड़चनों के बाद मैंने, व्यस्त रहने के लिए किसी भी निरीह कार्य पर निर्भरता समाप्त कर ली है क्योंकि बचपन में ही अज्ञात सूत्रों से मुझे ज्ञात हो गया था कि इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए, बिना किसी कार्य के दबाव में आए व्यस्तता के हत्थे चढ़ना ज़रूरी है।
व्यस्तता, एक संक्रामक रोग है, जिससे मैं वर्षो से सूज और जूझ रहा हूँ। सालो की साधना से मैंने व्यस्त होने और दिखने का अंतर उसी तरह से मिटा दिया है जिस तरीके से राजनीती ने ईमानदार होने और ईमानदार दिखने का अंतर मिटाया है।
शुरुआती दिनों में ,संघर्ष करने के बाद भी मुझे कई बार "व्यस्तता रेखा" के नीचे गुजर-बसर करना पड़ता था लेकिन सतत प्रयासों के बाद अब मुझे समाज के सभी तबकों द्वारा स्थाई रूप से व्यस्त मान लिया गया है, जिसका प्रमुख समाचार पत्रों में सार्वजनिक रूप से धन्यवाद ज्ञापन, अभी तक व्यस्त होने के कारण मैं नहीं दे पाया हूँ।
एक बार अगर इंसान को व्यस्त रहने का चस्का लग जाए तो वो खुद ही रह रह कर व्यस्तता की चुस्की लेने लगता है। फिर थोड़ा सा भी खाली रहने पर, इंसान रात के खाने के बाद, मानहानि और आत्मग्लानि के दो चम्मच, पानी-पानी होकर लेने लगता है। व्यस्त इंसान के दिलो-दिमाग पर काम से ज़्यादा, व्यस्त दिखने का बोझ होता है जिसे वो सोते वक्त भी बिना मूवर्स-पैकर्स के ढोता रहता है।
व्यस्त होने या दिखने का सबसे बड़ा फायदा तो बिना पगड़ी या सेंसेक्स उछाले यही होता है कि, कोई भी संभावित कार्य आप की तरफ रुख करने की हिमाकत करे उससे पहले ही आपकी सुरक्षा में लगे आपके स्वभाव और बॉडी लैंग्वेज रूपी एसपीजी गार्ड्स द्वारा उसको दबोच कर हिरासत में ले लिया जाता है। व्यस्त इंसान, समाज और हर कामकाज की संपत्ति होता है क्योंकि वो कई दायित्वों में अपनी टांग फंसा कर चलता है, इसीलिए उसके औंधे मुँह गिरने की ज़िम्मेदारी समाज को नैतिक रूप से अपने कंधों पर लेकर चलनी चाहिए।
व्यस्त रहना एक निरंतर प्रक्रिया जिसके लिए कोई क्रिया होना अनिवार्य नहीं है। व्यस्त व्यक्ति के निकट , प्रकट होना एक साहस का कार्य है जिसे हंस कर अंजाम नहीं दिया जा सकता है। व्यस्तता से ग्रसित इंसान को लगने लगता है कि दुनिया का हर दूसरा आदमी, उसको व्यस्त रखने की साज़िश कर रहा है और उसके खून के साथ साथ उसके समय का भी प्यासा है।
व्यस्त इंसान को अक्सर समय की कमी रहती है लेकिन दुर्भाग्य से उसको समय की बोतलें चढ़ाने की बजाय चने के झाड़ पर चढ़ा दिया जाता है। कॉलर कोई भी हो, व्यस्त पुरुष की कॉलर ट्यून हमेशा पूरी निष्ठा और प्रतिष्ठा के साथ ,"अभी थोड़ा बिजी हूँ !" अलापती है।
बिजी आदमी, समय के साथ साथ अपने पाप भी मुफ्त में काट लेता है क्योंकि व्यस्त इंसान, शौक और हर्ष की मार्केटिंग कॉल्स से त्रस्त नही होता है।व्यस्तता इंसान को मोक्ष की और धकेलती है, एक ऐसा मोक्ष जो ऊपरवाला ,बिना नीचे आए और बिना प्रोमोकोड यूज़ किए ,कैशबैक के रूप में आपके खाते में जमा कर, आपके पापों को 'पे' कर देता है।