बुरा न मानो होली है 

होली विभिन्न रंगों का त्यौहार है. राजनीतिक होली में लफंगीरंग, हुडदंगीरंग,चेला चपाटीरंग, जुमलेबाजी रंग, घोटालेबाजी रंग, देशभक्ति रंग, मन की बात का रंग भी खूब लगाया जाता है क्योंकि बुरा न मानो होली है. इसके अलावा कोई बुरा भी मान जाये तो दूसरा कर भी क्या सकता है.

खैर किसी विषय को राजनीतिक मुद्दा बनाना हो तो उसमें राजनीतिक रंग डाल दो फिर देखो रंगों के कमाल. जुमलेबाजी रंग, आरोप प्रत्यारोपी रंग,घोटाली रंग खूब निखरकर आता है साथ ही देखने वाले को मजा भी खूब दिलाता है. यूँ तो राजनीति में कुछ ही रंगों की भरमार है ऐसा लगता है जैसे बाकी रंग राजनीति करने से कतराते हैं. वक्त बे वक्त इन रंगों पर दूसरे रंग चढ़ जाते हैं मानो रंग न हो  रंगरेज की दुकान हो. वैसे तो दिखावट में एक रंग दूसरे का विरोधी होता है मजाल दोनों रंग आपस में मिल जाएँ पर राजनीति में रंगों का घालमेल चलता है. राजनीतिक होली में किसी पंचांग की जरूरत नहीं होती जब  चाहो होली, दीवाली मना लो.  नीली,पीली, लाल, भगवा, हरा, गुलाबी, सफेद सब अपने आप में अलग तो हैं पर एक दूसरे से जुड़े भी हैं. 

यूँ तो यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है लेकिन अब इसकी कोई निश्चितता नहीं जिसे देखो वो अपने हिसाब से मना ले और जब चाहे मना ले, बस बहाना चाहिए. अरे हाँ इस होली के भी तो बहुतेरे नाम हैं. एक बात और इन राजनीतिक पार्टियों की ईद ए गुलाबीया, धुलेंडी, धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन मनाने का कोई हिसाब किताब नहीं है  कि कब तक और किस दिन मनाना है इनकी तो अपने मन की गंगा अपने मन की जमुना बहती रहती है.

 

कहने को होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला भारतीय लोगों का त्यौहार है लेकिन खूनी  होली देश से लेकर विदेशों में आये दिन खेली ही जाती है जिसके लिए किसी खास मौसम की जरूरत नहीं. अपने यहाँ पीकर मासूमों को रौंद देने भर से, भूख के लिए चोरी करने पर मार देने से, सांप्रदायिक पिचकारी से खूब खूनी होली खेली जा रही है. सीरिया म्यांमार जैसे देश भी इस खूनी होली से बचे नहीं हैं. अब इसे मनाने के लिए किसी होलिका को जलाने की जरूरत नहीं, जिन्दा इंसानों का जला देने से ही काम चल जाता है. हाँ कभी कभी इसका रंग-रूप बदल जरूर जाता है मसलन जाति गत खूनी होली, धार्मिक सौहार्द दंगे फसाद की होली, स्थानीय विशेष की होली, लव जिहादी होली, लोगों के उजाडन की होली... ऐसी होली किसी धर्म विशेष से नहीं जुड़ी होती, इसके लिए राजनीतिक धर्म ही सर्वोपरि है.   

 राजनीतिक हुडदंगी आपस में आरोप प्रत्यारोप के गुब्बारे आये दिन फेंकते रहते हैं. संसद, रैलियों में जुबानी गुलाल-अबीर की बौछार भी करते रहते हैं. इन हुडदंगों की एक खास पहचान है रंगीन होते हुए भी ये सभी रंगों को मिलकर काला रंग बनाते है और   सफेदपोश कहलाते है क्योंकि 'बुरा ना मानो होली है' का लेबल जो लगाते हैं.


तारीख: 20.03.2018                                    आरिफा एविस









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