ये भी क्या बिड़म्बना रही इतनी शिद्दतों ,मुद्दतों और हुज्जतों बाद नयी नौकरी यानि कि बैंक में कार्यभार संभालना पर यहां तो मेरा हाल फैक्टरी वर्कर से भी बुरा होता जा रहा है।लगातार नित्य आना और बिना रूके लगातार काम करते जाने से हालत पतली होती जा रही है और मैनेजर साहब का अलग से फरमान है कि लेट तक रुको व सारा काम आज ही निपटाओ ।
अब क्या जवाब दूं उस अज़ीज़ मित्र को कि मेरी छुट्टियां रद्द हो चुकी है और मेरा उनकी शादी में शरीक होना कतई संभव नहीं।वो नहीं समझ पा रहा पर मैं उसे कैसे अवगत करांऊ अपनी ऐसी स्थिति से बस ऐसा लगता है कि 'मेरा दर्द ना जाने कोय' मुझपर सटीक बैठता है।
पिछले एक पखवाड़े से किसी से ढंग से बात भी नहीं कर सके नींद भी आंखों से कोसों दूर हो चली है।पेट गला सबका एक जैसा हाल है।नवंबर की सुहावनी ठंड सूबह की कतारों को देख रोज़ गोली हो जाती है बेचारा लंचबाॅक्स भी बड़ी मायूसी से निहारकर सकपका जाता है अब तो आंखें भी गोल गोल बटन सी होती जा रही है।घरों में मित्रों में सहानुभूति का पात्र होने के साथ साथ एक लतीफ़ा सा भी बनता जा रहा हूं।
प्रेमप्रणय का बिगड़ता रुप एवम् चिड़चिड़ेपन को इतने करीब से देख रहा हूं कि इन दोनों के मध्य का अंतर समझ आ चुका है मेरा ज़मीर भी अब ठहाके मार मार कर तंज कसता है मेरी विवशता पर।हाल बेहाल हो चुका अब तो वेअदवी से मेरा रुतवा
घर और बाहर दोनों तरफ धाराशाही हो गया।रंगमंच का भांड भी मुझसे ज्यादा सुस्ता लेता होगा अब तो मुझे भी थोड़ी फुर्सत मिले ताकि मैं इस मरियल सी बाॅड़ीको सहला खुजला सकूं।