देश की आजादी के इतने दिनों बाद भी जल,जंगल, जमीन के लिए समझौता वार्ता, शांति वार्ता, सीबीआई जाँच,लाखों लोगों का पलायन, हजारों लोगों की मौत, इतना करने पर भी यह मुद्दा सैटल नहीं हो पा रहा है. देखना आज हम यह मुद्दा चुटकियों में हल कर देंगे. “भाइयो और बहनों जल जंगल जमीन का मसला बंदूक की नाल पर हल नहीं होगा इसके लिए आदिवासियों की सहमति जरूरी है, यह उनका अधिकार है जिसे छीना नहीं जा सकता है.जैसे किसानों की जमीन को सहमति से सस्ते में लेकर साहूकार को दे दी जाती है उसी प्रकार आप लोग भी सहमति से जल जंगल जमीन से अपना पिंड छुड़ा सकते हैं."
साहूकार : "मंत्री जी ये आपने क्या कह दिया, आपने इन तुच्छ और पिछड़े लोगों के लिए अधिकारों की बात कह दी और विकास को पीछे छोड़ दिया.अब हमारे विकास का क्या होगा,कहाँ तो आपने विकास विकास की ही रट लगा रखी थी. कहाँ आप अधिकार की बात करने लगे."
मंत्री : "हां भई हां, हमें आपके विकास का पता है, यह हमारा तुम्हारा एक ही एजेंडा है. राजी खुशी जमीन देंगे तो भीख देंगे वरना मौत की मीठी नींद देंगे. वैसे भी खून की गंगा कब तक बहायेंगे यह समय इस गंगा को पवित्र करने का है और उसी के लिए यह उपदेश जरूरी है. फिर खून चाहे किसी का भी बहे आदिवासियों का या सैनिकों का. हमारा और तुम्हारा तो खून नहीं बहेगा."
साहूकार : "हा हा हा, पर आदिवासियों का समर्थन ?"
नेताजी: "बिना समर्थन के आपको जल, जंगल और जमीन का पुश्तैनी हक़ कैसे मिल सकता है? जब सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता तो ऊँगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है फिर तुम्हें तो घी से मतलब है.आम खाओ गुठलियों को मत गिनों. सरकार आये या जाये क्या फर्क पड़ता है, तुम्हारा कारोबार तो नहीं रुकता कभी. उत्पीड़ित करने का दाग तो हम लेते हैं, आप तो सुपर निरमा की तरह उजले रहते हो. आदिवासियों के साथ का मतलब यह नहीं कि मैं सोनी सोरी और इरोम शर्मीला के साथ हूं. उनके हक़ की बात करना और उनके हक़ के लिए लड़ना बिलकुल वैसा ही है जैसे रेडियो पर मन की बात कहना."
साहूकार : "मान गए मंत्री जी आपकी पारखी नजर और निरमा सुपर पर दोनों को. वैसे भी जल, जंगल, जमीन का दोहन तो हम देश हित में रख कर करेंगे. हजारों सालों से चली आ रही आदिवासी सभ्यता को हम मिटा तो सकते हैं. इसीलिए देशी- विदेशी एनजीओ को यहाँ काम करने के लिए छोड़ दिया है सेफ्टी वाल्व के तौर पर ताकि गंभीर समस्या होने पर वो आन्दोलन को संभाल सकें और सरकार से लड़े साहूकार से नहीं. हमारी न काहू दोस्ती न काहू से बैर हमें चाहिए बस व्यापार की खैर."
मंत्री : "हां सही कहा, सरकार तो आनी जानी है. रहती तो बस साहूकारी है. साहूकार को बचाने के लिए बैंक है, जेल है, कानून है, सरकार है. आप जैसे काम कर रहे हैं वैसे ही करिए आपको रोका नहीं जा सकता. आप लोग अपना कर्म करो फल की चिंता हमारी है कि आपको आपके कर्म का सही और उचित फल मिले. सहानुभूति से भी मुनाफा कमाया जा सकता और युद्ध से भी बस ये कला आनी चाहिए."
मंत्री : "भाईयों और बहनों देश को डिजीटाईलेशन की जरूरत है, आदिवासी यदि इस स्तर तक पहुँच गया तो आप यकीन करे जल, जंगल, जमीन के बदले विकास की गंगा बहेगी. आप लोगों के लिए विकास केंद्र खोले जा रहे हैं. ताकि विकास केन्द्रों का विकास सुनिश्चित हो सके.आज जंगलों में रोजी रोटी से ज्यादा डिजीटाईलेशन की जरूरत है."