अंदर के रावण का सरकारी दहन

 

दशहरे पर केवल रावण का पुतला दहन कर ही हम संतुष्ट नहीं होते है बल्कि ये दिल माँगे मोर की सवारी करते हुए, अंदर के रावण को मारने वाले ज्ञान का बम्पर उत्पादन भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करते है। दशहरे के दिन अंदर के रावण का मौत से अपॉइंटमेंट फिक्स करना एक दुष्कर कार्य है क्योंकि दशहरे की केवल एक दिन की छुट्टी होती है और छुट्टी के दिन एक भारतीय आदमी से कुछ भी कार्य करने की अपेक्षा रखना सविंधान की मूल भावना के खिलाफ है। 

इसके अलावा "अहिंसा परमो धर्म" की चादर बिछाने और ओढ़ने वाले गाँधीवादी देश मे अंदर के रावण को मारने के लिए हिंसा की मोटिवेशनल जैकेट पहनना टेढ़ी खीर है जिसमे ड्राई-फ्रूट्स भी नहीं है। अंदर के रावण को मारना आम आदमी के लिए भावनात्मक रूप से भी बहुत मुश्किल होता है कि क्योंकि जिस रावण को कई वर्षों तक पाल-पोस कर बड़ा किया उसे एक दिन में कैसे निपटा सकते है। 

समय की धूप पाकर ज़रूरत से ज़्यादा पके हुए विद्वान कहते है कि अंदर के रावण को मारने के बजाए उसे स्वाभाविक मृत्य के लिए छोड़ दिया जाए ताकि मानवीय मूल्यों को पूरी तरह से आउटडेटेड होने से बचाया जा सके। बिना रुके हुए विद्वान आगे कहते है कि, "अगर रावण इच्छा मृत्यु की माँग करे तो उसे निपटाने पर विचार और उसके बाद ज़रूरी हुआ तो विमर्श भी किया जा सकता है।"

अपने अंदर के रावण को मारने के ज्ञान की फ्री डिलीवरी तो हर कोई करता है लेकिन ज्ञान का अजीर्ण रोक कर कोई यह नहीं बताता कि अंदर मतलब कितने अंदर का रावण मारना उचित होगा?  दिल का रावण मारे , या लीवर का मारे या फिर किडनी का  रावण मारे? अंदर के रावण को मारने के लिए किन हथियारों का प्रयोग किया जाए?  मारने के बाद उसका पोस्टमार्टम किया जाए या नहीं? , उसकी लाश को कहाँ ठिकाने लगाया जाए? और क्या रावण के साथ-साथ अंदर के कुम्भकर्ण और मेघनाद को भी मारना चाहिए?  इन सब ज़्वलंत प्रश्नों पर सरकार और विपक्ष की पप्पी अर्थात चुप्पी के चलते अंदर के रावण को मारने का अभियान ज़नधन खाते का ज़ुबानी जमा खर्च बन कर रह गया। सरकारी पहल के अभाव में नैराश्य का बैकग्राउंड़ एमबी के बदले जीबी में डाऊनलोड हो रहा है और अंदर का रावण "दूधो नहाओ-पूतो फलों" का पैकेज एन्जॉय कर रहा है।

सरकार को चाहिए को वो लोगो को अपने अंदर के रावण को मारने के लिए प्रेरित करने के लिए ज़रूरतमंदों को मुद्रा योजना के  तहत न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराए ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग अपने अंदर के रावण की देह को बिना किसी संदेह के बाहर निकाल सके। स्कूलों के पाठ्यक्रम में दशहरे पर अपने अंदर के रावण को मारने के लिए प्रेरणात्मक दोहे और सूक्तियां शामिल की जानी चाहिए ताकि किशोरावस्था तक आते आते बच्चे अपने अंदर के रावण की सुपारी दे सके। दशहरा आने से दो-तीन महीने पहले से हर गली और उसमें पनपे मोहल्ले में अंदर के रावण को मारने की ट्रेनिंग कुशल सरकारी स्कूलों के अध्यापकों द्वारा दी जानी चाहिए क्योंकि एक बार किसी कार्य का सरकारीकरण कर दिया जाए तो उस कार्य की अंजाम से मुठभेड़ करवाने की एकमात्र ज़िम्मेदारी सरकारी अध्यापकों की ही होती है।

केंद्र सरकार को सभी राज्य सरकारों के साथ बैठक और साज़िश करके, अपने अंदर के रावण को मारने की न्यूनतम और अधिकतम आयु निर्धारित करनी चाहिए। न्यूनतम आयु से पहले अपने अंदर के रावण को मारने वालो को टू-व्हीलर से बाल सुधार गृह भेजा जाना चाहिए और अधिकतम आयु के बाद भी अपने अंदर के रावण को न मार पाने वाले व्यक्ति के खिलाफ गैर ज़मानती वारंट निकालकर उसे हिरासत वाले बिग-बॉस के हवाले कर देना चाहिए।

हर व्यक्ति जो अपने आपको परिवार का मुखिया समझता है उसके लिए अपने घर के सभी सदस्यों के अंदर के रावण को ठिकाने लगवाकर संबंधित विभाग से "नो-ड्यूज" सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए। अगर किसी परिवार का मुखिया "नो-ड्यूज" सर्टिफिकेट नही ले पाता है तो उसका राशनकार्ड पर लगा फ़ोटो उसकी फेसबुक प्रोफाइल फ़ोटो बना देना चाहिए और हवाई यात्रा करने के बावजूद भी उसके एयरपोर्ट से "चेकइन" करने पर रोक लगा देनी चाहिए।

इसके उलट अपने अंदर के रावण का उचित समय पर दहन कर अन्य लोगो को भी इसके लिए माचिस उपलब्ध कराने वाले सज्जनों को दशहरे पर खरीदी के लिए पेटीएम पर 50% कैशबैक दिया जाना चाहिए और बाकि 50% के लिए उसी बैंक से लोन दिया जाना चाहिए जहाँ से चूना लगाओ उद्योग के जनक विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे उद्योगपतियों को ऋण दिया गया था।

अगर सरकार और जनता  हाथ (और उस पर बने टैटू भी) मिला ले तो जल्द ही पल्स-पोलियो मुक्त भारत की तर्ज़ पर "अंदर का रावण मुक्त भारत" भी बनाया जा सकता है। अंदर का रावण भले ही आपकी निजी संपत्ति हो लेकिन  सरकारी दहन उसकी नियति है।


तारीख: 12.10.2019                                    अमित शर्मा 









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है