पहले मुझे कुछ कुछ होकर बहुत कुछ ज्ञात होता था कि हमारे देश मे कोई भी कार्य ईमानदारी पेटीएम करने से संपन्न नहीं होता है। लेकिन मेरी पाली पोसी लाडली धारणा को मेरे शहर के बिजली विभाग ने ठीक उसी तरह तबाह कर दिया जैसे BSF, पाकिस्तान के बंकर तबाह करता है। बिजली विभाग नियत समय पर ईमानदारी से हाथ धोकर, अपनी नीयत में खोट का इंजेक्शन लगवाकर, बिजली की कटौती को बिना किसीे जाम के अंजाम तक पहुँचाता है। देश मे कुछ समय पर हो या ना हो लेकिन चुनाव और बिजली कटौती बिल्कुल समय से होती है। बिजली विभाग की नियमितता देख, मेरी आँखें और इनवर्टर कंपनियो की जेब दोनो एक साथ भर जाती है। बिजली कटौती की मौसम निरपेक्षता में बोरिंग मशीन से खुदी, गहरी आस्था होती है। हर मौसम में बिजली कटौती, आसम (awesome) रहना चाहती है, हालाँकि गर्मी के मौसम में ज़रूर इसे लू की वजह से पॉवर-कट की रट लग जाती है।
भारत मे पॉवर के साथ कट उसी तरह से आलिंगनबद्ध है अर्थात जुड़ा हुआ जैसे बेरोज़गारी से मनरेगा। बिजली विभाग पॉवर को उसी तरह से कट करता है जिस प्रकार से मुख्य अतिथि रिबन काट कर किसी शोरूम या कार्यक्रम का उद्घाटन करता है। समय और दिल से विद्युत कर देने के बाद भी जनता को 24 घंटे बिजली के लिए ना-नुकुर ही मिलती है।
चुनाव में प्रत्येक दल 24 घंटे बिजली देने का वादा करता है और यह वादा प्रेमिका को चाँद-तारे तोड़ लाने की तरह शाश्वत है। कोई भी राजनैतिक दल कभी भी इस वादे को पूर्णता के एक्सप्रेस वे की तरफ नहीं धकेलता है ताकि बिना टोल टैक्स दिए, अगले चुनाव में फिर इस वादे को प्रक्षेपित कर जनता के समक्ष वोट लेने के लिए अर्जी और ईवीएम लगाई जा सके।
शहरी लोग आधुनिक विचारो को पालते है ज़बकि गाँव के लोग अभी भी पुराने विचारो की आवभगत में ही गुत्थमगुत्था रहते है। शहर में बिजली चली जाए तो लोग बिजली को कुछ नही कहते है बल्कि बिजली विभाग और सरकार के विरुद्ध "कोसारोपण अभियान" को गुस्से में लाल होकर हरी झंडी दिखाते है। ज़बकि गाँव मे बिजली गुल हो जाए और घंटो वापस ना आए तो बिजली के चरित्र पर बिना किसी लेबर चार्ज के लांछन का प्लास्टिक पेंट कर देते है।
बिजली कटौती के कई बसंत अपनी सगी आंखों से चख चुके लोगो का मानना है कि बिजली कटौती या तो नियमित हो सकती है या फिर संयमित। पॉवर कट की इस किटकिट पर जनता के पास धैर्य और जनरेटर रखने के अलावा और कोई चारा नही होता है।
बिजली वि 'भाग' कभी भी अपनी ज़िम्मेदारी से भागता नही है और बिजली कटौती को गिरफ्तार कर पूर्ण समर्पण भाव से उसे आमजन के हवाले कर देता है। कोई भी कांड होने के बाद उसकी जिम्मेदारी पुलिस किसी ना किसी के काबिल कंधो पर डाल देती है लेकिन बिजली विभाग ही एकमात्र ऐसा कुशल विभाग है जो कि कांड करने से पहले ही उसकी सूचना अखबारो के माध्यम से जनता को समर्पित कर देता है। यह बिजली विभाग की जनता के प्रति वफादारी को बिना सब्सिडी काटे दर्शाता है। बिजली विभाग, ईमानदारी और वफादारी का भोजन कर देशवासियो की उत्सवधर्मिता का सेंसेक्स उछालने के लिए पूरा जोर और आवाज़ लगाता है। बिजली गुम होने के बाद जब बिजली बिना गुमशुदा की रिपोर्ट लिखाए ही पुनः बरामद कर ली जाती है तो लोग एक दूसरे के गले पड़कर बधाई और चार्जर देने लगते है। बिजली आने की खुशी में महिलाएं,सुर के नेटवर्क में आकर मंगल गीत गाने लगती है। धारा 144 जैसा माहौल बिना किसी बल प्रयोग के उत्सवनुमा हो जाता है। कभी कभी तो उत्सव का पारा इस हद तक चढ़ जाता है कि स्थिति को काबू में लाने के लिए प्रशासन को फिर से बिजली काटनी पड़ती है।
प्रशासन, बिजली कंपनियों के साथ सांठगांठ करने की बदनामी झेलकर भी आमजन का उल्लास और उत्सवधर्मिता बनाए रखता है, इसके लिए प्रशासन स्वाभाविक रूप से बधाई और कमीशन का पात्र है।
स्वतंत्रता के इतने सालों बाद भी सरकारो ने बिजली को मूलभूत आवश्यकता ना बनाकर लक्सरी बना कर रखा हुआ है ताकि लोगो को बिजली की राजनैतिक लत ना लग पाए। सरकार के दावे पूर्णतया सत्य की चाशनी में डूबे हुए है कि उसने हर गाँव तक बिजली पहुँचा दी है। अब बिजली पहुँचने के बाद अगर वहाँ टिक नही पा रही है तो इसके लिए सरकार को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि वो तो पहले से ही ज़िम्मेदार है।
पूजनीय गौतम बुद्ध ने "अप्प दीपो भव" का संदेश दिया था लेकिन अब इस पॉवर-कट काल मे बिजली कटौती के विक्टिम्स अर्थात बिजलिकटिम्स के मुँह से "अप्प इनवर्टर भव" बिना ज़मानत के ही रिहा होता है।