जंचतो माँ विदेशगमय

सभी भारतीयों के दिल मे वसुधैव कुटुंबकम का ब्रॉड-बैंड कनेक्शन होता है जो हमे देश के साथ-साथ विदेश को भी अपने प्रेम की चपेट में लेने के लिए उकसाता है। विदेश के प्रति अपना खोलता हुआ प्रेम, हम स्वदेश मे बैठकर ठंडा नहीं कर पाते है, इसीलिए अपनी प्रेमअगन की भिड़ंत, ठंडे बस्ते से करवाने के लिए  बज़ट पार करके भी सात-समंदर पार चले जाते है।

 

विदेश जाने के क्रेज़ में विदेशयात्रातुर जीव, साक्षात क्रेज़ी स्वरूप में आमजन को दर्शन लाभ उपलब्ध करवाते है। विदेशयात्रातुर जीव, ज़्योतिषी लोगो को अक्सर सिलिपॉइंट पर कैच करके उनसे अपने विदेश यात्रा के योग के बारे में पूछताछ करते है। ज़्योतिषी लोग भी उन्हें भूतप्रेत बाधा की तर्ज़ पर विदेश यात्रा पर कट लेने में कई तरह की पगबाधा बताते है क्योंकि विदेश यात्रा पर आदमी तभी गमन कर सकता है जब उसके पैर जमीन पर ना पड़े।  पगबाधा पर ज़्योतिषी की अंगुली और आवाज़ ना उठे इससे पहले ही ज़्योतिषी जी के हाथ मे दक्षिणा का रिव्यू थमा दिया जाता है। ज़्योतिषी जी के हाथ मे इंस्टाल की गई दक्षिणा आपके विदेश यात्रा के योग को प्रबल बनाने में पूरा बल लगाती है। दक्षिणा, कुंडली के ग्रह और ज़्योतिषी जी के पूर्वाग्रह दोनो को स्वादानुसार संतुष्ट करती है।

 

विदेश यात्रा पर जाने के साल-छ महिने पहले से ही इंसान विदेश यात्रा के लिए ज़रूरी कार्यो पर गोलाबारी शुरू कर देता है ताकि बॉर्डर क्रॉस करने में कोई व्यवधान और विधान आड़े और टेढ़े ना आए। इसमें सबसे ज़रूरी काम होता है सभी दोस्तो, रिश्तेदारों और दोस्तो/रिश्तेदारो की पैकिंग में गुजरबसर कर रहे अशुभचिंतको तक अपनी विदेश यात्रा का प्रचार प्रसार करना। बिना प्रचार-प्रसार के विदेश यात्रा  ठीक वैसी ही है जैसे बिना मेकअप की हिरोइन। विदेश यात्रा की टिकट बुक करने में भले ही देर हो जाए लेकिन विदेश यात्रा की खबर हर जानने पहचानने वाले तक समय से पूर्व, अभिमान की थाली में गरमागरम परोस दी जानी चाहिए ताकि वे उसे ग्रहण कर आपके विदेशगमन से पहले ही आपको बधाई और शुभकामनाओ का ग्रहण लगा सके और अपनी ईर्ष्या और जलन के लिए पर्याप्त मात्रा में ईनो और ईगो का इंतज़ाम कर सके। विदेश यात्रा की खबर आग और अफवाह की तरह फैलाने के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है,  खबर सुनकर हताहत होने वाले लोगो के लिए घर पर और समय पर फायर-ब्रिगेड की व्यवस्था करना ताकि सात-समुंदर पार जाने के बाद आपको पानी-पानी ना होना पड़े। 

 

विदेश यात्रा पर जाने वाले ज़्यादातर लोग फायर-ब्रिगेड को, अपनी ज़बान की लगाम छोड़कर घटनास्थल पर रवाना करते है। "ये तो (विदेश यात्रा) आपका ही आशीर्वाद है, इसी तरह बनाए रखे।" इस तरह की अनगिनत ज़ुबानी बौछार रिहा करने के बाद फायर-ब्रिगेड फिर से अपने नियत स्थान पर प्रस्थान कर जाती है। एक बार टिकट बुक हो जाने के बाद एक आम भारतीय पूरी तरह से अपने आपकों विदेश यात्रा के हवाले कर गुनगुनाने लगता है ,"अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों।" 

 

मध्यमवर्गीय भारतीय, विदेश यात्रा की सारी रस्मे दिल और बिल दोनो से  बारी-बारी निभाता है। इस रस्म का सबसे महत्वपूर्ण चरण मोबाइल कैमरे से फेसबुक पर फिल्माया जाता है, जब विदेश यात्रा पर कूच करने वाला व्यक्ति या परिवार के सारे लोग "फीलिंग एक्साइटेड" के कैप्शन के साथ एयरपोर्ट पर लोग-इन अर्थात चेक- इन करके सेल्फी भरी चैन की सांस लेते है। विदेश यात्रा के लिए फेसबुक पर चेक-इन करना उतना ही ज़रूरी है जितना कि पासपोर्ट और वीज़ा ज़रूरी है। एयरपोर्ट पर चेक-इन से लोगो की भावनाए और लाइक-कमेंट दोनो जुड़े हुए है इसीलिए जो लोग फेसबुक पर एयरपोर्ट चेक-इन किए बिना ही विदेश यात्रा पर निकल जाते है सरकार को उनका पासपोर्ट और फेसबुक प्रोफाइल दोनो ज़ब्त कर लेनी चाहिए। निर्मोही व्यक्तियो को विदेश यात्रा के दिखावे की बलि चढ़ाने से रोकने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए।

 

केवल स्वयं की विदेश यात्रा ही नहीं बल्कि विदेश में रहने वाले रिश्तेदार भी इंसान की मान-प्रतिष्ठा बढ़ाने हेतु लिए गए लोन की ईएमआई भरते है। किसी करीबी के विदेश में रहने से स्वदेश में रहने वाले उसके रिश्तेदार अपने सम्मान की खुजली बढ़ा लेते है जिससे कोई इचगार्ड या सिक्योरिटी गार्ड सुरक्षा और सांत्वना नही दे सकता है। बेटे या बेटी के विदेश जाते ही माँ-बाप, सम्मान और गर्व के जॉइंट वेंचर से निकली गंगा में डूबकी नहीं लगाते बल्कि रोज़ घंटो उसी मे अपने तैराकी कौशल का प्रदर्शन करते है।

 

"यू नो, मेरा सगा बेटा/बेटी यूके, यूएस, यूएई और युगांडा में एक साथ सेटल और सटल है।" ऐसे कालजयी और उनसे नज़दीकी रिश्ता रखने वाले ब्रह्मवाक्य, भावनाओ की चाशनी से मुठभेड़ करते हुए अक्सर अभिभावको के मुखमंडल से ऊँची उड़ान भरने के लिए टेकऑफ करते हुए देखे जाते है। ऐसे बच्चे विदेश जाने से पहले ज़रूर अपनी माँ से कहते होंगे, "जंचतो माँ विदेशगमय।"

 

विदेश के प्रति हमारा लगाव, हमारे स्वदेशी प्रेम को कुपोषण का शिकार नहीं बनाता है क्योंकि हम तो सदियो से "धरती सब गोपाल की।" जैसे प्रोटीनयुक्त सिद्धांतो का मिड डे मील के रूप के एवन सेवन कर रहे है।

 


तारीख: 07.04.2020                                    अमित शर्मा 









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