लौकी बेचारी बनी महारानी

सासुमां को हल्की सब्ज़ी है भाती, खाने में लौकी बनवाती... पर मुझको ये फूटी आँख ना सुहाती...
चार किलो लौकी ले आई,
बिन मसाले की मुझसे बनवाई...

तभी ससुरजी धीरे से बोले,जैसे शब्दों को हैं तोले..
सब्ज़ी का नया शोरूम खुला है,
लौकी पर डिस्काउंट मिला है...
दो किलो के साथ, एक किलो मुफ्त मिला है...

आज जीभ ललचा रही है,
कोफ्ते खाने को मचला रही है...
तुम्हारी सास को कोफ्तों से है बैर,
तुम चुपके से बनाओ,
तब-तक तुम्हारी सास को करा लाता हूँ सैर...

लौकी देख दिल धड़क रहा था,
कैसे बनाऊं मन खड़क रहा था...

इतने में फोन की घंटी घनघनाई,
मुझे पिया जी की याद सताई...
बोले; आज ऑफिस में दिखाया मैंने जलवा,
प्रमोशन की ख़ुशी में, खिलो दो लौकी का हलवा...

प्रिय! ज़रा दरवाज़ा तो खोलो,
लौकी भिजवाई है ज़रा इसे तो लेलो...

मेरा सर चक्कर-खा रहा था,
बढ़-चढ़ कर मुंह चिड़ा रहा था...

तभी दनदनाते देवर जी आये,
गुस्से में भरभराये...
सुबह-शाम जिम कर रहा हूँ,
पर मोटापे को ढो रहा हूँ...

मेरी प्यारी-प्यारी भाभी,
पतलेपन की ढूंढ दो चाभी...
ज़रा, कोई तिकरम लगाओ,
लौकी का जूस पिलाओ...
ये लो; लौकी की भाजी,
अब मुझको भी कर दो राज़ी...

हाय!! किसने लौकी है उगाई;
उसने मुझ पे तरस ना खाई..

जल्दी-जल्दी सारे पकवान बनाये,
फिर भी लौकी बच जाए....

नंदरानी... तुम क्यों रहो पीछे,
बता दो अपनी फरमाइश, आँखों को भींचे...

खन-खन खनक रही भाभी की चूड़ियां,
वाह बन रही लौकी की पूड़ियाँ...

लौकी का रायता, लौकी की मुठिया...
और-तो-और
लौकी की गुझिया...

लग रहा है, जैसे लौकी की है शादी,
सारे पकवान बने हैं बाराती.
लौकी बेचारी, बनी महारानी...

ये कैसा है उतावलापन,
लौकी के प्रति दीवानापन...
ठुमक-ठुमक सब नाच रहे हैं,
अपनी उँगलियाँ चाट रहे हैं....

तभी दरवाज़े पर हुई दस्तक,
मन में हुई कुछ खटखट...

जैसे-तैसे दरवाज़ा खोला,
बुआजी ने 'नमस्ते' से मुंह खोला...

बोली खेत में खूब सब्ज़ी है उग आई,
इसलिए दस किलो लौकी मैं लाई...

जाने अब क्या होगा भगवान्!
मन में उमठ रहे थे विचार,
चलो बनाएं लौकी का आचार....


तारीख: 09.02.2024                                    मंजरी शर्मा









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