बाज आए वर्क फ्रॅाम होम से

हमने गाय भैंसों के बाड़े तो गांव में देखे हैं। आपने भी जरुर देखे होंगे। बचपन में कईयों के मुंह से यह बोलते सुना था- ’खाला जी का बाड़ा ’ समझ रखा है क्या ? उन दिनों खलीफा भी होंगे , खालाएं भी होंगी और उनके बाड़े भी जरुर रहे होंगे। लेकिन आज तो हमारा खुद का घर, हमारा ही बाड़ा बन चुका है। बाड़ा तो छोड़िऐ,पूरा  कबाड़ा बन चुका है। पूछिए क्यों ?
  तो जनाबे आली! जब से कोरोना नामक बीमारी के साथ वर्क फ्रॉम होम की, फ्री स्कीम चिपकाई गई है, अच्छे अच्छे लोग सिर पर बिना तेल लगाए  , बार बार हाथ फेर रहे हैं। कहां बॉस छुटटी देने में आना कानी करता था , अब छुटट्ी ही छुट्टी। लेकिन यह छुट्टी एक बंधुआ मजदूर वाली। बच्चों की क्लासें घर से। बीवी का दफतर घर से। उसकी किट्टी ऑन लाइन। पेंरेट- टीचर मीट, प्रेमी- प्रेमिका टवीट् , लड़के -लड़की की देखन- दिखाई, योगा से भोगा तक सब अंडर वन रुफ और सब ऑन लाइन। यहां तक कि रिश्तेदारों से बेज्जती भी ऑन लाइन.......वो भी पावर प्वांएट इश्टाइल में हो रही है। सब कुछ ऑन लाइन हैं और जिंदगी ऑफ लाइन।
    घर का हर कमरा बुक है। एक में एक की क्लास चालू है। दूसरे में दूसरे के एग्जाम ऑन लाइन चल रहे हैं। तीसरे में पत्नी अलग  दफ्तर सजाए बैठी है। और नहीं तो उसकी कुकरी क्लास में लैप टाप पर बैंगन का भुरता बन रहा है या वेबीनार पर कवियत्री सम्मेलन चल रहा है।। शाम को संगीत या टैरो कार्ड की क्लासें हैं। ऑनलाइन खाना आ रहा है। हमें तो घर बैठे ऑनलाइन कोरोना श्री का सर्टीफिकेट भी फ्री में मिल गया था।  साथ कई चैनलों औेर अखबारों मे कोरोना के दौरान दिखाई गई  हमारी हमार बहादुरी की चर्चाएं , हमारे कहीं गए बिना ही खूब छपी। कल ही बहुत अच्छा ऑफर ऑनलाइन आया है- अपने नाम के साथ डाक्टर और पी.एच. डी लिखवाएं मात्र 2500 में। मिडल फेल, बी.ए की डिग्री पाएं केवल  3100 में।

   हमारे एक मित्र ,बाबू रामलाल जो एक मल्टी नेशनल में एक्जीक्युटिव कहला रहे थे, आज 24 घंटो बिजी हैं। न रात का पता है  न दिन का। जब इनकी रात है तो बॉस की गुड मार्निंग  है। टॉयलेट में भी लैपटाप या टैेब या मोबाइल हाथ में पकड़ कर बैठना रोटीन मजबूरी  बन गया है। सुबह आंख खुलते ही मोबाइल या ई मेल पर 36 रिर्पोंटें मांगी गई होती हैं। बड़ा लुत्फ था दफतर जाते थे वो! अब तो पैंट पहने ही मुदद्त हो गई है। बस आस्मानी शर्ट, नीली टाई  और शॉर्ट ही इनकी ड््रैस है।
     पिंकी रोज भगवान से  दुआ कर रही है कि कोरोना की तीसरी लहर खत्म हो और वो आफिस जाए। दफतर में आठ घंटे ही किच किच थी । घर में सास की खिच खिच, राउंड द् क्लॉक हो गई है। आफिस  में  आफिस का एसी, वहीं का फोन, वहीं की चाय, काम करो न करो , बंक मार लो लेकिन वर्क फ्रॅाम होम से काम और बढ़ गया । पांच लोगों की छुटटी कर दी गई और सारा काम पिंकी के पल्ले। शुरु शुरु में यह एक मनचाहा उपहार लगता था। न उठने की टेंशन, न तैयार होने की जल्दी, बिस्तर पर उंकड़ू बैठो या लेट कर काम करो। लेकिन अब यही गले की फांस बन गया है।
  कपनियां बड़ी चालू हो गई हैं। जब लोग घर से काम कर सकते हैं तो जरुर दफ्तरों पर पैसा बर्बाद करना। एक एम्पलाई 10 के बराबर काम कर सकता है तो फौज की क्या जरुरत ? युवा मोबाइल पर खबरें पढ़ लेता है तो अखबार छापने की क्या जरुरत। सब शाने हो गए हैं।
   जिसे भी देखिए वो वर्क फ्रॉम होम में बिजी है। कोई कंप्यूटर पर नौकरी खोज रहा है तो कोई उसी पर इंटरव्यू दे रहा है। कोई बैठे ठाले घर में ही नई नौकरी जवाएन कर रहा है। यही नहीं अपने मोबाइल पर ही मुबारकें,मिठाईयां  और रंग बिरंगे बुके रिसीव कर रहा है।
   सड़क पर या ट्रैफिक सिग्नल पर मांगने वाले हाईटैक हो गए हैं ...सैल्फ एम्पलायड हो गए हैं। अब आपकी कार का शीशा नहीं खटखटाएगा कोई।  चोर उच्चकांे, उठाईगिरों, फ्रॉडियों की प्रोमोशन हो गई है।पहले कुछ सज्जन अपने परिचितों या रिश्तेदारों से उधार मांग कर गायब हो जाते थे। अब वे घर बैठे ही आनंद ले रहे हैं। आपको काफी दिनों बाद पता चलता है कि अपन का फेसबुक एकाउंट हैक हो गया है। आपकी जगह कोई अन्जान आपके नाम से आपके रिश्तेदारों , दोस्तों से आनलाइन उधार मांग रहा है। एक फोन कॉल पर नंबर बता देने से बैंक का खाता खाली हो गया है। कहीं आने जाने की जरुरत नहीं। खून पसीना बहाने की जरुरत नहीं। घर बैठे ही मालामाल बनो वाले दिन आ गए हैं! सब कुछ ऑनलाइन और वो भी विदाउट वर्क बट फ्रॉम होम।


तारीख: 15.03.2024                                    मदन गुप्ता सपाटू









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