16 December

निर्भया हम शर्मिंदा हैं
तेरे क़ातिल अभी ज़िंदा हैं..
December की उस सर्द रात में
तुम्हारे बदन से एक एक करके
जब कपड़े उतर रहे थे.. ज़बर्दस्ती


उतर रहे थे हमारे भी चहरों मुखौटे
जो हमने सदियों से पहन रखे हैं
शायद तुम्हारी चीख़ें उस अंधेरे में 
रास्ता नहीं तालाश पायी होंगी


मगर हम भी बहरे थे निर्भया
उस रात से पहले और उसके बाद भी
तुम्हारे आँसुओ ने जब 
ज़मीन को छुआ होगा उनके साथ
बह गए होंगे हमारे सब वादे
जो हमने रक्षाबंधन पर 
किए थे हमारी बहनों से


निर्भया हम शर्मिंदा हैं के 
उस गूँगी बहरी भीड़ का हिस्सा हम भी थे
जो छोड़ गयी होगी तुम्हें वहाँ 
मगर ले गयी होंगी साथ तुम्हारी तस्वीरें 
निर्भया शायद हम शर्मिंदा हैं..
नहीं शायद बिलकुल नहीं...
 


तारीख: 17.03.2018                                    राहुल तिवारी




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