
कविता - 01
( मनहरण कवित्त छन्द )
ऐसा क्यों करते हो
अधिक अंक लाल लाया लिखित परीक्षा में,
भेंट भेदभाव चढ़कर पीछे पड़ता।
एकलव्य एकबार फिर फ़िदा हुआ हाय!,
द्रोण दर्शाता दुष्टता न्याय नहीं करता।
कैसी कुत्सित मानसिकता मन में “मारुत”,
गुरु गरिमा गिराके भेद भव भरता।
अँगूठा आज काटा करवाल साक्षात्कार से,
अव्वल आत्मीय अर्जुन को कैसे करता।।
कविता - 02
( रूप घनाक्षरी छन्द )
अन्धे ही तो है
अन्धभक्त असामान्य अज्ञानी अन्धविश्वासी,
बहकते बेचारे बहकाते बातुल धूर्त।
अतीव अज़ीब-ओ-ग़रीब दयनीय दशा,
तर्क तजते तमाशा बनते मनुष्य मूर्त।
विरोध विज्ञान का करते कमण्डल क्योंकि,
मानस माय मैला भरा अत्यधिक अमूर्त।
कोई कितना समझाओ समझता न नर,
“मारुत” माने मतिमन्द मन मुख्य मूहूर्त।।
कविता - 03
( रूप घनाक्षरी छन्द )
हैरत होती है
कहते कहानी हैरतपूर्ण हमेशा हम,
भरते भव भावुकता भाव भर-भरकर।
श्रद्धा श्रद्धालुओं की कही काबिल-ए-तारीफ,
भ्रमित भले भोले-भाले भय भर-भरकर।
तर्क-तीर तरकश को कभी चलाना चाहे,
परम्परा पग पकड़े धैर्य धर-धरकर।
जालिम जकड़ते जहान जन्नत-जलेबी,
“मारुत मनुष्य मन मरता मर-मरकर।।