आओ ज़िंदगी संवारें

रौंदकर अपनी तकलीफों को आओ जिंदगी जियें,

पीसकर अपने दुखों को आओ ज़िंदगी जियें|

 

चूरकर नफरतों को आओ गले लग जाएँ,

भूलकर वेदनाओं को आओ जरा खिलखिलाएं|

 

सुनकर कोयल की बोली ज़रा मुस्कुराएं,

चहकते बचपन को यादकर आओ गम भुलाएं|

 

काम को परे हटाकर कुछ वक़्त साथ गुज़ारें,

मैं की ओढ़ी चादर को बदन से हटा लें|

 

दर्द को दफ़न कर कुछ कदम साथ बढ़ाएं,

डर को डराकर सफलता छीन लाएं|

 

आज मिलकर बैठकर हम ज़िंदगी संवारें,

आओ आज स्वर्ग को ज़मीन पर उतारें|


तारीख: 13.03.2025                                    शीलव्रत पटेरिया




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है


नीचे पढ़िए इस केटेगरी की और रचनायें