आप जो थोड़ा सा मुस्कुरा लेंगे

अदब से शीश झुका लेंगे 
आप जो थोड़ा सा मुस्कुरा लेंगे
हमने कब कहा कि आप 
हमारी मंजिल को 
अपनी मंजिल बना लो,
आप राहे हमारी से गुजरिये तो सही 
हम अपने नैनों को समझा लेंगे ।

एक ख्वाहिशे ही मेरी अपनी थी 
बाकी सभी कुछ तो पराया था 
नैनो में जो सपने थे 
बेरंग ही सही मेरे अपने थे
ख्वाहिशो को मेरी 
बैचेन तो आपने किया 
मुजरिम तो आपके नैन थे
सजा मुझको सुना गये 
क्या खूब हंसी गुनाह किया आपने 
मेरे ही सपनो को बेवफा किया आपने 
डरिये नहीं 
ये सजा हमको मंजूर है
शुक्रिया आपका 
बेरंग सपनो को हमारे
क्या खूब रंग दिया है आपने 
अब यहां ओर ठहरकर 
मेरी उम्मीदो को पंख न लगाओ 
उठाओ नाजुक से अपने कदम
उम्मीद के पंछी को ओर न बहकाओ 
हमें आपका साथ नहीं
आपकी मुस्कान चाहिए 
मेरे जज्बातो के फूल 
भले आप ले जाओ
हम आपकी मुस्कान की खूशबू से
अपना दामन महका लेंगे
आप जो थोड़ा सा मुस्कुरा लेंगे 
हम अदब से अपना शीश झुका लेंगे ।


तारीख: 17.03.2018                                    देवेन्द्र सिंह उर्फ देव









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