अधूरी कहानी

लौटाने थे आये, वो मेरे खत मुझे 
पूछा कि कैसे जिओगे, तो अल्फाज़ जैसे जल गये

लिया जो हमनें हथेलियों में, मुखङा उनका
आंखे रहीं गुमसुम, पर इकबारगी वो भी मचल गये

पलकों में छुपा रहे थे, तसव्वुफ़-ए-शबनम हमसे
इस कोशिश में वो मेरे ताउम्र के जज्बात कुचल गये

पूछा जो हमनें बिखरी हुई जुल्फों का सबब 
दिखा किसी और के नाम की मेंहदी, वो सरे राह बदल गये

कहते थे कि उनके वादे हैं, अबद-ऐ-आलम-अज़ीम
हल्की सी धूप क्या पङी, बर्फ से भी जल्दी पिघल गये

की जो हमने तस्दीक, कैसे थामा दामन-ए-गैर
बङी मासूमियत से बोले, अनजाने में फिसल गये

उनके बिन, इक इक सांस सदियों का सफर हो गयी है, 
ओ लोग देतें हैं हिम्मते दाद.......... 
कि "उत्तम" तुम कितनी आसानी से सम्भल गये


*तसव्वुफ़-ए-शबनम = रहस्यमयी ओस
*अबद-ऐ-आलम-अज़ीम = सृष्टि में अनन्तकाल से सबसे विशाल
*तस्दीक = पूछताछ


तारीख: 06.06.2017                                    उत्तम दिनोदिया









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