पहले मैं, फिर तुम
फिर हम दोनों।
फिर हम।
फिर एक।
फिर मैं और तुम,
अजनबी हुए, अंजान हुए
अब कोई सबंध न और विचारों,
इसे अब यूँही रहने दो।
कसमे-वसमे, टूटे बिखरे
याद वाद, सब बीते मिसरे।
जुबां ये तेरे,
जुबां ये मेरे,
करेले हुए नीम हुए
अब जा के हम 'इंसान' हुए।
मुझे न तुम और सुधारो
मुझे बस यूँही रहने दो।
आदत-वादत सब
वैसी ही आज है।
हाँ, उठ-उठ सोना,
मुँह ढक कर रोना,
ये एक नई बात है।
इसी बहाने कम से कम,
तुम पास हुए, मुझे एहसास हुए।
इस रात पर और कालिख डालो,
इसे अब यूँही रहने दो।
हम खूब मिले,
हम खूब खिले।
एक-दो पग या,
दो-तीन डग,
बस इतना ही हम साथ चले।
फिर कुछ खून हुए,
और कत्ल हुए,
लो हम अब शमशान हुए,
आओ इस कहानी पर,
तुम सब भी थोड़ी मिट्टी डालो,
इसे अब यूँही रहने दो।