सूखे दरख्तों से जब पूछा
उनकी उदासी का कारण
पहले पत्तों ने साथ छोड़ा
अब कोई मजबूत डाली शायद टूटी थी
वो गुंचे, फूल और वो कलियां
अतीत हो चुके थे
परिंदों के भी घर टूटे थे
वे भी आज उदास थे
वो चिड़ियाएं भी कभी नहीं आयेंगी
जिनकी चहचहाट हमें सुकून देती थीं
सब चले गए
एक सपाट, वीरान सा रेगिस्तान था
दरख्तों का क्या होगा
जल जाएंगे एक दिन
सूखी लकड़ी बनकर
जो वर्षों तक थे हरे भरे
वो शज़र,आज सूख जाने से कट गये