( रूप घनाक्षरी छन्द )
धन्धा बढ़िया चल रहा है
कामचोर कुटिल करवाते पूजा पैरों की,
वासर-विभावरी बहुत पाते पकवान।
आराम आठों प्रहर पाक पट पर करे,
बने बनाकर धर्म-धन्धा धूर्त धनवान।
तन-मन-धन द्रव्य देता सेवक समान,
चंचल चालाकों से हा! हारा वीर बलवान।
कल्पित कथाएँ कह भरमाया भारी भव,
“मारुत” मूरख मत बनो बनो विद्यावान।।