कविता - 01
( मनहरण कवित्त छन्द )
दुर्दशा देख लीजिए
प्यारा प्राणी पड़ा पाले पाखण्ड प्रचारकों के,
मूहूर्त देख-देख दुगुना दुख है पाता।
पाखण्डवाद पाँव पसारता पुरुष पर,
शनै: शनै: लूट लेता कंगाल कर जाता।
ढोंग ढकोसला गहनतम गहरा गड्डा,
गिरे गहरे गड्डे में मानव फँस जाता।
बिना मूहूर्त मानुष जन्म जग माहीं लेता,
बिना मूहूर्त “मारुत” मनुष्य मर जाता।।
कविता - 02
( देव घनाक्षरी छन्द )
कब समझोगे
कैसी कलित कल्पना करी काले व्यालों ने,
भयंकर भय भ्रम भरा भोले-भाले भुवन।
सुन्दर सपने स्वर्ग के दिखाते दुनिया को,
दान दक्षिणा दे दीजिए मुक्ति मिलेगी सुवन।
गल्प गढ़-गढ़कर लूट लिया लोगन को,
भ्रम जाल डाल-डालकर भरमाया भुवन।
“मारुत” मनचलों ने पूरा पाखण्ड प्रचारा,
जहाँ जनक-जननी पाते सुख स्वर्ग सुवन।।
कविता - 03
( रूप घनाक्षरी छन्द )
यज्ञ कुण्डी ले लीजिए
करते कर्मकाण्ड कितने सालों से समझो,
पैसा प्राप्त करने का कितना साधन सरल।
पकवान प्रतिदिन पाक पाते नये-नये,
बहु बर्तन वस्त्र पाते पाते घी तेल तरल।
पाखण्ड प्रचार करे काल्पनिक बातें बता,
यार यजमान यज्ञ की कुण्डी पे धन धरल।
“मारुत” मार्ग मुक्ति का बताकर बहकाते,
प्रिय प्राणी पाखण्ड तजो तीखा गहरा गरल।।