उबलती गर्मियों के बाद, जो बारिश हुई होगी ,
ताप से तप रहे लोगों को कुछ राहत मिली होगी,
सूखते पेड़, पाकर जल ज़रा सा, बच गए होंगे,
ज़मीं की प्यास भी शायद, तनिक सी बुझ गई होगी,
धूप से जल रहे कुछ बीज में, अंँखुए उगे होंगे,
हरारत फूल -पौधों की भी, थोड़ी घट गई होगी।
शहर, कस्बों, देहातों में, खूब मस्ती हुई होगी,
अमीरों के घरों की खिड़कियां भी खुल गई होंगी,
हथेली नर्म सी, बरखा की बूँदें खोजती होंगी,
ये नटखट बूँद, वह नाज़ुक हथेली, चूमती होगी,
क़ीमती छतरियां लेकर, लोग कुछ घूमते होंगे,
समोसे - चाय की चुस्की के चस्के ले रहे होंगे,
बहुत से लोग, मैखाने के रस्ते खोजते होंगे,
जाम के घूंँट भर कर, वे नशे में झूमते होंगे।
भूख से कुलबुलाती आंँत लेकर, तड़पते होंगे,
मजूरी आज बारिश में, नहीं जिनको मिली होगी ,
वहाँ, उस झोपड़ी की छत, अचानक फट गई होगी
पुराने बाँस-बल्ली पर, फूस से जो बनी होगी ,
दुबक कर पेड़ के नीचे, बेचारे भीगते होंगे ,
गृहस्थी आजतक जिनकी, चली फुटपाथ पर होगी।