धूप कभी आना मेरे आँगन में
करना बौछार अपने धवल किरणों की
मेरे घर की टूटी छत पर
तेरी तपिश से खिल उठेंगे पुष्प मेरे बगिया के
तुझसे मिलकर कितनी खुश होगी
नीम पर फुदकती गिलहरी
गौरैया भी सुनाएगी गीत कोई
खिलाऊंगा तुझे
बाजरे की रोटी और पालक का साग
बैठ नीम की छाँव में
करेंगे मन की बात
बचपन में क्या तू भी
नटखट थी मेरी तरह
चोरी-चोरी क्या तूने भी तोड़ी हैं
कच्ची अमियाँ डाल से
अपने दोस्तों के साथ
क्या तूने भी कभी दौड़ाई कागज की नांव
रिमझिम बरसात में
धूप, आएगी जब तू मेरे घर
मिलकर बनाएंगे गाँव की नदिया किनारे
एक छोटा-सा घर
रेत की चांदनी जमीन पर
गेहूँ की सुनहरी बालियों को छूते हुए
सैर कराऊंगा अपने हरे-भरे गांव की
कितनी सूंदर कितनी मोहक
होती है सिंदूरी सांझ मेरे गाँव की
धूप, तू आना कभी मेरे गाँव