फितरत

लोगों में अब इंसानियत ढूँढ़ता है
पगला गया है शायद
अपने आप में वह दीवानियत ढूँढ़ता है
मिल रही है, यही बहुत है
रोटियों में क्यों मुलायमियत ढूँढ़ता है


सवाल अपनों से कई करता है
अमल ग़ैरों के जवाबों पर करता है
बाहर निकला है शहर में
ख़ाली बैठे लोगों में मसरूफ़ियत ढूँढ़ता है


बिता ली है पूरी उम्र साथ, फिर भी
रिश्तों में अंजानियत ढूँढ़ता है
सामने मेरे रहता है पर
ग़ैरों से मेरी कैफ़ियत पूछता है


मेरी आँखों में चाहता है
अपनी आँखों का पानी
यह कैसी वो अब रवानियत ढूँढ़ता है
बिकने आया था इस बाज़ार में, मैं भी
वहाँ कोई मुझे नहीं, उसे ढूँढ़ता है


उसकी दुनिया में उलझा के मुझे
मेरी दुनिया ख़त्म करना चाहता है
वह मेरी क़ब्र पर खड़ा है
नीचे झुक कर मेरे दिल की धड़कन सुनता है


तारीख: 30.05.2025                                    प्रतीक बिसारिया




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