सुबह बातें हुई थी कुछ बेरुखी सी
दिन भर कसकती रही वह दुखी सी
साँझ का सूरज नये उमंग जगाएगा
उम्मीद की दुल्हन फिर सजती है
घंटी बजती है
परदेश में बेटा बस रहा है
उन्नति के पेंच कस रहा है
बची हर साँस जुड़े उसके साँसों में
हर साँस में यही दुआ सजती है
घंटी बजती है
जीवन का अंत भी अभी आता होगा
फिर बस आत्माओं का ही नाता होगा
दूरी इतनी है कि बुला नहीं सकता उन्हें
एक बार सुनू मुन्नी कैसे बोलती हँसती है
घंटी बजती है
सुरमई नैनों से मिले जब मेरे नैन
सवेरा हुआ उस अमावस्या की रैन
रूप के बरसात ने मन को ऐसे घेरा
होश प्रेम के जंजीरों में जब बंधती है
घंटी बजती है
जब सारे शृंगार बेगाने लगते हैं
जीवन के सत्य सताने लगते हैं
आत्मा आस्था का सहारा खोजती है
समर्पण से जब भक्ति की दुल्हन सजती है
घंटी बजती है