घर से निकलते वक़्त

Ghar se nikalte waqt

घर से निकलते वक़्त 
सामान से ज्यादा भारी होता है मन,

बढ़ते कदमों के साथ 
बदन से झड़ता है मोह, रेत की तरह

फिर पहुँच कर हवाईअड्डे
होता है जब वज़न मातृत्व का

और रह जाता है जब
पंद्रह में किलो एक कम,

तब लगता है,
इसबार ठेकुआ छूट गया।


तारीख: 20.03.2018                                    अंकित मिश्रा




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