ज़िन्दगी का सफ़र

 

ज़िन्दगी का सफ़र कुछ यूँ भी समझ ही नहीं आया,
हर लड़की की तरह मेरे भी मासूम सपने ।
सुनहरे ख़्वाब थे,.. 
गिरी उठी सम्भली क्यूँकि उम्मीद थी 
दो क़दम आगे ख़ुशियाँ बाँहें फैलाए खड़ी थीं,
मैं एक-एक क़दम चलती गई...

ख़ुशियों की तलाश में, अपनों की तलाश में,
ये एहसास ही न हुआ कि सफ़र ख़त्म भी होता है।
मेरे पास हर रिश्ता था, कोई कमी भी न थी,
मगर अफ़सोस, मन को कोई रिश्ता छू न सका।

और जो रिश्ता मन को भाया,
वो मन को ही घायल कर गया।

उस सच्चे रिश्ते  की तलाश ,
ज़िन्दगी पे इतना भारी पड़ा,
कि सब कुछ तबाह कर गया।

सबने कहा, "सच्चाई को स्वीकार करो,
अपनी भावनाओं पे क़ाबू रखो।"
परिपक्व तो बना दिया अपनों ने मुझे,
पर मेरे जीने की वजह ख़त्म कर दी।
मेरी ख़ुशी, मेरी उमंग, सब जल कर ख़ाक हो गया।

रोज़ सुबह ख़ुद से समझौता करती हूँ,
शाम होते ही उम्मीदों को कफ़न पहनते देखती हूँ।
हर शर्त मान कर सो जाती हूँ...
ऐसा नहीं कि कोशिश नहीं करती,
पर मुझसे होता ही नहीं।

अब अंतरात्मा से आवाज़ आती है,
"क्यों करती है ये कोशिश?
ये तेरी क़िस्मत में नहीं है।"


तारीख: 07.06.2025                                    Rima Ji




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